हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक युग

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हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक युग

हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक युग

प्रागैतिहासिक हिमाचल प्रदेश का प्रशासनिक और राजनीतिक इतिहास काफी जटिल है, क्योंकि यह लिखित इतिहास से पहले का है और मुख्य रूप से पुरातात्विक खोजों, मौखिक परंपराओं और प्राचीन सभ्यताओं के अध्ययन पर आधारित है।

भारत के उत्तरी भाग में स्थित हिमाचल प्रदेश अपनी पर्वतीय भू-आकृति, विशेष रूप से हिमालय के कारण जाना जाता है। इस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना ने इसके प्रागैतिहासिक समाजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उनके आवास पैटर्न, आजीविका के तरीके, और पड़ोसी क्षेत्रों के साथ उनके संबंधों को प्रभावित किया।

  1. प्रारंभिक मानव निवास:

हिमाचल प्रदेश में मानव आवास के साक्ष्य पुरापाषाण युग (पैलियोलिथिक काल) से जुड़े हैं, जो लगभग 40,000 वर्ष पहले का है। पुरातत्व स्थलों, जैसे ब्रह्मपुत्र घाटी और सांघोल में, ऐसे प्रमाण मिले हैं जो प्रारंभिक मानवों की उपस्थिति को दर्शाते हैं। ये प्रारंभिक मानव मुख्य रूप से शिकारी-संग्राहक थे।

Prehistoric Era of Himachal Pradesh

ऐसा माना जाता है कि ये समुदाय गुफाओं में रहते थे और पत्थरों के औज़ारों का उपयोग करते थे, जो विभिन्न पुरातात्विक खुदाई में पाए गए हैं।

सतलुज, ब्यास, और रावी जैसी नदी घाटियों ने प्रारंभिक मानव आवास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान कीं।

प्लीस्टोसीन युग के दौरान, इस क्षेत्र में प्रारंभिक मानवों का आगमन हुआ। यहां आदिम औज़ार और जीवाश्म मिले हैं, जो पाषाण युग के दौरान मानव जीवन की पुष्टि करते हैं।

  1. पुरातात्विक खोजें

हिमाचल प्रदेश के प्रागैतिहासिक निवास को निम्नलिखित युगों में विभाजित किया गया है:

a) पुरापाषाण युग (प्राचीन पाषाण युग): लगभग 25 लाख वर्ष पहले से 10,000 ईसा पूर्व तक।

साक्ष्य:

  • कांगड़ा, मंडी और बिलासपुर क्षेत्रों में पत्थरों के औज़ार और कुल्हाड़ियाँ पाई गई हैं।
  • ये औज़ार यह दर्शाते हैं कि प्रारंभिक मानव मुख्य रूप से शिकारी और संग्रहकर्ता थे और जीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर थे।
  • नदी किनारे बस्तियाँ पानी और भोजन के स्रोत के लिए उपयुक्त मानी जाती थीं।

b) मध्यपाषाण युग (मध्य पाषाण युग): लगभग 10,000 ईसा पूर्व से 8,000 ईसा पूर्व तक।

साक्ष्य:

  • सिरमौर के मार्कंडा घाटी में छोटे औज़ार, जैसे माइक्रोलिथ, खोजे गए हैं।
  • यह युग खानाबदोश जनजातियों द्वारा मौसमी प्रवास का प्रतीक है, जो शिकार, मछली पकड़ने और पौधों के संग्रह पर निर्भर थे।
  • इस समय के रॉक शेल्टर (गुफा आवास) पाए गए हैं, जो मानव व्यवहार और गतिशीलता में बदलाव दिखाते हैं।

 

c) नवपाषाण युग (नया पाषाण युग): लगभग 8,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व तक।

साक्ष्य:

  • हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में प्रारंभिक कृषि और पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।
  • स्पीति, किन्नौर और चंबा की नदी घाटियों में आदिम बस्तियाँ पाई गई हैं।

नवपाषाण काल सामाजिक संगठन और श्रम विभाजन की शुरुआत का प्रतीक है, जो आगे चलकर प्रशासनिक प्रणालियों का आधार बना।

  1. प्रारंभिक प्रशासनिक संरचनाएँ

प्रागैतिहासिक हिमाचल प्रदेश में बाद के काल की तरह संरचित राजनीतिक प्रणालियाँ नहीं थीं, लेकिन कुछ बुनियादी सामाजिक संगठनों के प्रमाण हैं:

कुल और जनजातीय समाज:

  • समुदायों का आधार रक्त संबंध और जीविका रणनीतियाँ थीं।
  • बुजुर्ग या मुखिया विवादों का निपटारा, संसाधनों का आवंटन और सामूहिक एकता बनाए रखने का कार्य करते थे।

भौगोलिक एकता:

  • मानव बस्तियाँ घाटियों तक सीमित थीं, जहाँ जनजातियाँ अपने शिकार और निवास के क्षेत्र चिन्हित करती थीं।

संसाधन साझा करना:

  • जल, जंगल और शिकार का सामूहिक उपयोग आदिम सामुदायिक व्यवस्था का हिस्सा था।
  1. सिंधु घाटी सभ्यता में भूमिका

प्रागैतिहासिक काल के बाद के चरण में, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों (विशेषकर तराई क्षेत्रों) का सिंधु घाटी सभ्यता (2500–1900 ईसा पूर्व) के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ।

  • सतलुज और यमुना नदियों के जरिए व्यापारिक संबंधों के प्रमाण मिले हैं।
  • सिरमौर और बिलासपुर जैसे क्षेत्रों में मिले पुरावशेष सिंधु घाटी की शहरी बस्तियों से मिलते-जुलते हैं।
  1. आध्यात्मिक विश्वास और प्रारंभिक संस्कृति

हिमाचल प्रदेश के प्रागैतिहासिक निवासियों के पास एक प्रारंभिक विश्वास प्रणाली थी:

  • आनिमिज्म और प्रकृति पूजा: नदियों, पहाड़ों और जंगलों का सम्मान, जो बाद में इस क्षेत्र में हिंदू मान्यताओं का आधार बना।
  • कुलदेवता और जनजातीय देवता:जनजातियाँ अपने पूर्वजों, कुलदेवता, पशुओं और प्राकृतिक घटनाओं की पूजा करती थीं।
  • कला और संस्कृति: शिला-चित्र (रॉक आर्ट) और प्रारंभिक मिट्टी के बर्तनों के प्रमाण मिले हैं, जो संस्कृति के विकास को दर्शाते हैं।
  1. प्रोटो(आद्य )ऐतिहासिक युग की ओर परिवर्तनकाल

जैसे-जैसे जनजातीय समाजों का विकास हुआ, उनकी आदिम प्रशासनिक व्यवस्था धीरे-धीरे अधिक संरचित प्रणालियों में बदल गई:

  • संसाधन नियंत्रण के आधार पर नेतृत्व का उदय।
  • उपजाऊ भूमि और संसाधनों को सुरक्षित करने के लिए अंतर-जनजातीय संबंधों में संघर्ष और गठजोड़।
  • आद्य (प्रोटो)-ऐतिहासिक युग तक ये जनजातियाँ प्रारंभिक “जनपदों” (छोटे राज्यों) में बदल गईं, जिनका उल्लेख प्राचीन वैदिक ग्रंथों में मिलता है।